वो मई-जून की शाम,
और वो घंटाघर का ट्रेफिक जाम्।
वो हिंडन नदी की हवा,
और वो नई-बस्ती की दवा।
वो तुराब नगर की शापिंग,
और वो बस-अड्डा की हीटींग्।
वो लोहिया पार्क का नज़ारा,
और वो कैला-भट्टा का सड़ा माज़रा।
वो दुकनदारों के कब्जों से सुकड़्ती सड़्कें,
जहॉ वो ना जाने कितने लोग लुढ्के?
वो सड़्कों पर नमाज़ पड़्ते नमाज़ियों का आचार,
और प्रशासन की मीठी नींद का विचार्।
वो लोकनाथ की लस्सी,
और पंडित ढाबे की मिस्सी।
वो गांधी की रायता-कचौड़ी,
और वो किशन की टिक्की-पकौड़ी।
वो गंगनहर का चटनी-सेंडविच्। ,
और वो मोहन भोग का फलूदा-समोसा।
वो मिशन स्कूलों की पढाई,
और वो फुट्पाथ की मिठाई।
वो दुधेश्वर धाम के भक्तों का हजूम,
और वो घंटाघर के हनुमान मंदिर का जनून।
ये हैं खट्टी-मीठी यादें,
कुछ ऐसी हैं हमारे गाज़ियाबाद के बातें।
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