जिंदगी की इस भाग-दौड़ में,
कहॉ खो गये हम भाईयों,
कोई नहीं जानता।
गोद में खेलने वाले बच्चे,
कैसे बच्चों के बाप बन गये,
कोई नहीं जानता।
किराये के कमरे से शुरू सफरनामा,
कैसे अपने फ्लेट में बंद हो गया,
कोई नहीं जानता।
पैदल हंसते-भागते शुरू हुआ सफर,
कैसे कारों में खांसते खत्म हो गया,
कोई नहीं जानता।
कभी था मां-बाप का साया,
कैसे बच्चे बने हमारा साया,
कोई नहीं जानता।
कभी दिन में भी बे-धड़्क सोते थे,
कैसे अब रात में भी उड़ गयी नींद,
कोई नहीं जानता।
कभी काली जुल्फों को लहराते थे हम,
कैसे अब हम सफेद बाल भी ढूढ्ते हैं,
कोई नहीं जानता।
बच्चों को ऐशो-आराम देने में इतने खोये,
कैसे बच्चे भी हम से दूर हो गये,
कोई नहीं जानता।
कभी कुनबे, खाप पर गुमान होता था,
कैसे हम दो, हमारे दो ही हो गये,
कोई नहीं जानता।
जब सोचा कि अब अपने लिये जी लें,
कैसे तब सांसें ही साथ छोड़ कर चल दीं,
कोई नहीं जानता।
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