Sunday, 7 April 2019

अंधेरी गलियों का भटकता साया


कस्बों की गलियों मे जब अंधेरा होता है,
तंग-पतली गलियों मे चौकस,
धीरे-धीरे भारी कदमों की ठक-ठक,  
रात के काले अंधेरे को तोड़्ते,
एक आवाज आती है,
जागते रहो, जागते रहो।

खुले कोठे के अंदर, बैठी एक बूढी-बेबस औरत,
अंदर से चीख कर बोली,
सोया ही कौन है बरखुरदार,
यहां लुटने के लिये बचा ही क्या है,
पर चौकीदार ने डंडे की ठक-ठक की,
और चीखा-जागते रहो, जागते रहो।

चुप-चाप अंधेरे मे, अधजले हवन-कुंड पर बैठा,
एक बूढा पंडित, पास नही तन ढकने को भी कपड़े,
चौकीदार के बूटॉ की ठक-ठक पर चीखा,
ठंडी रात मे हंस कर बोला,
आयुष्मान भवै, जुग-जुग जियो लाल बहादुर,
उधर से एक आवाज आयी- जागते रहो।

सुनसान, अंधेरी, ठंडी रातों में,
गलियां-सड़्कें नापते हुये, गुजर रहा था एक साया,
भयावय मौन में डुबे एक घर के सामने से,
खुले दरवाजे के अंदर झिलमिलाती एक लालटेन,
इंतजार करते, सीमा पर शहीद, पुत्र के ताबूत का,
कड़्क चौकीदार चीखा, जागते रहो।

सुनसान, अंधेरी, ठंडी रातों में,
कस्बों-शहरों की गलियों मे जब अंधेरा होता है,
एक साया धीरे-सधे कदमॉं से चलते हुये,
भोर होते ही, फुटपाथ पर सो जाता है,
सब को गहरी नींद सुलाने वाला चौकीदार,
थका-हारा फुटपाथ पर लाचार पड़ा है।

तभी एक आवाज ने चुप्पी तोड़ी,
सत्य बोलो सत्य है, श्री राम्-नाम सत्य है,  
बूढी-बेबस औरत, बूढा पंडित, बिलखता शहीद परिवार,
सभी नारे लगाते- शहीद! अमर रहे, अमर रहे,
नींद मे चौकीदार बुदबुदाया,

सब-कुछ् ठीक-ठाक है- जागते रहो-जागते रहो।

राजा हो या हो फकीर,
यहॉं है, सब चौकीदार,
कुछ तो आकर चले गये, कुछ जाने को तैयार,
खबरदार! चौकीदार,
सब-कुछ् है यहॉं ठीक-ठाक,  
जागते रहो-जागते रहो।









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