पिता
सब भ्रम है, मायाजाल है,
खोखले, फरेबी, मोहजाल हैं,
होता सबका एक मोल है,
वर्ना हो जाते रिश्ते बे-मेल।
होता सत्य एक रिश्ता,
छ्त्र साया अपने पिता का,
जाने के बाद भी पिता,
साया बन कर करता रक्षा।
सख्ती और प्रेम से,
जीने का पाठ सीखाता है,
पिता की छाया मे कोई,
मोल-भाव नही आता है।
चेहरे पर सुख-शान्ति,
पर दिल बैचैन रहता है।
साया पिता का, सकून के साथ,
पहरेदार बन रहता है।
कभी ना सोता यह साया,
मुकामॉ को लड़्ता रहता,
शान-शौकत, रुतवा, अरमानों से,
सपने और पोधों को सींचता।
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