शिक्षकों की नियुक्ति में जातिय रोस्टर सिस्टम की आंच ने आज उच्च शिक्षा को
लगभग बर्बाद कर दिया है। इस बर्बादी ने लगभग सभी विश्वविधालयॉ को अपने लपेटे में
ले लिया है। कुछ समय पहले देश के उच्च्तम न्यायालय ने शिक्षकों की नियुक्तियोंं
में 13
प्वाइंट रोस्टर को लागू करने मे माननीय इलाहबाद उच्च न्यायालय के निर्णय को उचित
ठहराते हुये, उसके
बिरुद्ध सभी अपील खारिज कर दी। परंतु
विश्वविधालयॉ एवम देश के सभी जातिय संघठन
एवम नेता 200 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम को लागु करवाना चहते है जिससे जातिय आरक्षण का प्रतिशत
काफी बढ जाता है।
शिक्षकों की नियुक्तियों में रोस्टर सिस्टम एक ऐसी समस्या है जो जातिय आरक्षण
के मुद्दे से जुड़ा हुआ है और इसीलिए इसने जातिय विघटन के साथ राजनीतिक रूप भी
अख्तियार कर लिया है। कानूनी लड़ाई में हार जाने के बाद सभी जातिय संघठन सडक पर आ
गये है तथा इसने शिक्षा, विश्वविधालय एवम सरकार को भी लपेटे में ले लिया है।
शिक्षकों एवम सरकारी नियुक्ति में अनारक्षित और जातिय आरक्षित पदों के विभिन्न
श्रेणियों में पदों का बंटवारा या आवंटन एक पद्धति से होता है जिसे रोस्टर सिस्टम
कहते हैं। विसंगतियॉ के कारण विश्वविधालयॉ मे 200 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम एक बढी
समस्या बना हुआ है।
देश मे आरक्षित पदों की विभिन्न श्रेणियों-ओबीसी के 27 प्रतिशत, एससी के 15 प्रतिशत, एसटी के 7.5 प्रतिशत और गैर आरक्षित
श्रेणी के शेष 50.5 प्रतिशत पदों के आवंटन की विशेष पद्धति रोस्टर कहलाती है। लंबे समय से किसी
कॉलेज या विश्वविद्यालय को एक इकाई मानकर उनके सभी पदॉ को मिलाकर एक ग्रुप बना
दिया जाता था तथा नियुक्तियां 200 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम के तहत होती थीं। इस व्यवस्था मे चौथी,
आठवीं और 12वीं ओबीसी जातियॉ के लिए, सातवीं पोस्ट एससी जातियॉ के
लिये, 14वीं पोस्ट एसटी के लिए
आरक्षित होती थी। पहली, दूसरी, तीसरी, पांचवीं, छठी, नौवीं, दसवीं, 11वीं और 13वीं पोस्ट गैर आराक्षित होती थी। फिर इसी व्यवस्था क्रम में
आगे के पद भरे जाते थे।
इस व्यवस्था में प्रत्येक 200 पदों को इस प्रकार बांटा गया था कि इनमे से से 30 पद एससी वर्ग के लिए, 15 एसटी और 54 ओबीसी के लिए आरक्षित होते
थे। कुल मिलाकर 99 अर्थात 49.5 प्रतिशत पद आरक्षित समुदायों के लिए और 101 पद अनारक्षित। इस प्रणाली में
एक विभाग/ विषय में अगर कोई पद आरक्षित नही है तो सीटों में कमी की भरपाई अन्य
विभागों में आरक्षण की अधिक संख्या द्वारा की जाती है।
विसंगतियॉ के कारण कभी-कभी इस व्यवस्था मे अनेक विभागॉ मे 50% से अधिक आरक्षण
हो जाता था। कभी-कभी तो आरक्षण किसी विभाग मे 100% हो जाता था। अनेक बार एक पद भी
आरक्षित हो जाता था। इस कारण आरक्षण 100% हो जाता था। 200 प्वाइंट आरक्षण व्यवस्था
सामान्य वर्ग के समानता के अधिकार पर भारी कुठाराघात था।
इस कारण 200 प्वाइंट रोस्टर व्यवस्था को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी गई तो 2017 में उसने 200 प्वाइंट रोस्टर व्यवस्था
को रद्द कर दिया और फैसला देते हुए यूजीसी गाइडलाइन की उपबंध संख्या 6(सी) और 8(ए)(5) को भी रद्द कर दिया,
जिसके तहत 200 प्वाइंट रोस्टर लागु
किया गया था और कॉलेज या विश्वविद्यालय को एक इकाई के रूप में माना जाता था। इलाहाबाद
हाईकोर्ट ने उसकी जगह 13 प्वाइंट रोस्टर व्यवस्था लागू करने को कहा जिसमें विभाग या
विषय को एक इकाई के रूप में लिया जाएगा।
हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा पहले के अनेक निर्णयों का हवाला देते हुए
कहा कि नियुक्तियां विभागीय स्तर पर होती हैं तथा दो अलग-अलग विभागॉ को मिलाया नही
जा सकता। किसी एक विभाग/ विषय का असिस्टेंट प्रोफेसर पद का उम्मीदवार किसी दूसरे, तीसरे या चौथे विभाग/ विषय में असोसिएट प्रोफेसर या
प्रोफेसर की नियुक्ति के लिए उम्मीदवार\आवेदक किसी भी हालत मे नहीं हो सकता। वह केवल अपने विषय में
पद के लिए उम्मीदवार/आवेदन कर सकता है।
इसी प्रकार दूसरे विभाग का प्रमुख या अध्ध्यक्ष बनने के लिए वरिष्ठता उसी विषय
के शिक्षकों की होती है, अन्य विभाग के उम्मीदवार\आवेदक की वरिष्ठता कोई महत्व नही रखती है । इसी प्रकार कॉलेज
या विश्वविद्यालय के स्तर पर विभिन्न विषयों के अभ्यर्थियों/शिक्षकों के मध्य आरंभ
से लेकर उच्च स्तर के सभी पदों पर चयन में कोई सम्बंध एवम प्रतियोगिता नहीं होती
है। सभी की अलग विषेषतायॅ होती हैं। उनकी चयन/प्रतिस्पर्धा उनके अपने विषय/विभाग
के आवेदक/उम्मीदवारों के साथ होती है अर्थात पूरे कॉलेज/विश्वविद्यालय से उनका कोई
मतलब नही होता है। यह बहुत बडी विसंगती थी।
तीसरे, बड़ी विसंगती यह देखी गयी कि हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि यदि विश्वविद्यालय को एक
इकाई मानकर रोस्टर लागू किया जाए तो इसका परिणाम यह हो सकता है कि कुछ
विभागों/विषयों में सभी आरक्षित पद आ जाएं और कुछ में सिर्फ अनारक्षित अर्थात
आरक्षण का प्रतीक्षत गणबणा जायेगा। विभाग/विषय को इकाई मानने के 13 प्वाइंट रोस्टर व्यवस्था
लागू करने के कोर्ट के इस फैसले के बाद जातिय संगठन एवम तत्व सड़क, सोशल मीडिया, मीडिया और संसद तक सक्रीय हो
गये। लोकसभा चुनाव पास आने के कारण इन तत्वॉ को भरपूर समर्थन एवम बढावा मिल रहा है
।
200 प्वाइंट आरक्षण व्यवस्था के समर्थकों द्वारा धरना, प्रदर्शन, हड़्ताल और अन्य तरीकों से उच्च्तम
न्यायालय के निर्णय का विरोध किया जा रहा है। इन तत्वॉ ने शैषिक कार्य एकदम ठप्प
कर रखा है।
उनके अनुसार इस फैसले से आरक्षित पद बहुत कम हो जाएंगे। अपने विरोध के समर्थन
में वे तर्क देते हैं कि अगर किसी विभाग में 14 से कम पद होंगे तो एसटी आरक्षण
से वंचित रह जाएंगे। अगर सात से कम होंगे तो एससी को और चार से कम होंगे तो ओबीसी
को कोई आरक्षण नहीं मिलेगा। यह तत्व अपने तर्को से सभी को भ्रमित कर रहे हैं। यहां
बताना जरूरी है कि अनारक्षित पद कॉलेज /विश्वविद्यालय में सभी के लिये ओपन होते
हैं। उन पर कोई आरक्षण नही होता है। इस तरह 13 प्वाइंट रोस्टर को लेकर आरक्षण
समर्थकों की आशंका एकदम नाजायज दिखती है।
आगामी आम चुनाव के कारण हर राजनीतिक दल आरक्षित वर्गों के साथ दिखना और चुनावी
फायदा उठाना चाहता है और उनका कोई विरोध भी नही हो रहा है। इसलिए इस पूरे मुद्दे
का भारी राजनीतिकरण हो रहा है। राजनीतिक दलों के अलावा, वैचारिक विरोध के कारण वाम
संघठन, जातिय समूह एवम अनेक
शिक्षक समूहों ने भी इसके लिए मोदी सरकार को बदनाम करना शुरू कर दिया है। हालांकि यह
फैसला अदालत का है, सरकार का नहीं। भाजपा सरकार एसी/एसटी ऐक्ट पर उच्च्तम न्यायालय के निर्णय पर
अध्ध्याधेश लाने का दुष्परिणाम राजस्थान, मध्यप्रदेश, छ्त्तीसगण एवम तेलांगना मे हार के रूप मे देख चुकी है। अत:
उसे तुष्टिकरण की राजनिती से बचना चहिये।
मानव संसाधन मंत्रालय ने अप्रैल 2018 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम
कोर्ट में एक विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर की थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट के दो जजों
की बेंच ने 22 जनवरी, 2019 को खारिज कर दिया।
केंद्र सरकार की तरफ से बहस करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि
संविधान के अनुच्छेद 16(4) के तहत नियुक्तियों में अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति
और अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों के लिए आरक्षण करने का विशेष प्रावधान करने का
अधिकार सरकार के पास है, अगर किसी समुदाय के लोगों को सेवाओं में पर्याप्त रूप से
प्रतिनिधित्व नहीं मिला हो। सरकार का यह भी तर्क खारिज कर दिया गया कि यदि
विश्वविद्यालय/कॉलेज के बजाय प्रत्येक विभाग/विषय को एक इकाई के रूप में लेते हुए रोस्टर
नीति लागू की जाती है तो कई विभागों में पदों की संख्या का कम होने की वजह से
आरक्षण लागू ही नहीं हो पाएगा। एसएलपी खारिज हो जाने के बाद सरकार ने आरक्षित
जातियॉ को खुश करने के लिये सुप्रीम कोर्ट के सामने एक पुनर्विचार याचिका भी दायर
की, लेकिन
उसे खारिज कर दिया गया। सरकार और सभी दलॉ ने इन जातिय समूहॉ के सामने घुटने टेक
दिये हैं। यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है कि अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानॉ मे इन
जातियॉ को कोई आरक्षण नही देते हैं। वहाँ इन सन सब घिघ्घी बंध जाती है।
अब सरकार के पास एक ही विकल्प इन जातिय समुहॉ को खुश करने को बचा है- कि सरकार
अध्यादेश लाए तथा देश, शिक्षा
एवम भाजपा पार्टी को बरबाद कर दे।
शिक्षा खास तौर से उच्च शिक्षा में आरक्षण नहीं होना चाहिए जैसा कि अमेरिका,
यूरोप और अन्य
विकसित देशों में होता है। इसमें सर्वश्रेष्ठ लोगों का ही चयन होना चाहिए, क्योंकि यह सामान्य
रोजगार न होकर एक तरह से सभी राष्ट्र एवम समाजसेवा है। गैर आरक्षित वर्गों के
श्रेष्ठ उम्मीदवारों के साथ अब भारी भेदभाव हो रहा है। इसीलिए आरक्षण एक विकल्प है, अधिकार नही और 13 प्वाइंट
रोस्टर इसका एक उचित तरीका है। सबको न्यायपालिका का सम्मान करना चाहिये।
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