सब कुछ लुट चुका है, अब और मत लूट, ऐ जिंदगी;
कतरा-कतरा बह गया, अब और मत बहा, ऐ जिंदगी।
अपने ही पराये हो गये, रिश्ते बन गये राजनीति, ऐ जिंदगी;
सम्बंध बन गये व्यापार, अब और मत बेच, ऐ जिंदगी।
यहां कौन दोस्त, कौन दुश्मन, जानता नहीं कोई, ऐ जिंदगी;
गद्दारों को अब और मत बुला हसने के लिये, ऐ जिंदगीं।
कितने इम्तहां और लेगी, तू मेरे, ऐ जिंदगी;
यहां शह मात के खेल में बचा ही क्या, ऐ जिंदगी।
ब्यार बहा दे प्यार की, जोड़ दे उजड़े दिलों को, ऐ जिंदगी;
भोर कर दे प्यार का, अब और जुदा ना कर, ऐ जिंदगी।
भूल-भुलय्या में खो गये आंख मिचोली करते-करते, ऐ जिंदगी;
और खेल अपना प्रेम-प्यार का दि:खा, ऐ जिंदगी।
चला दे प्रेम ब्यार, सुख सागर आगे करके, ऐ जिंदगी;
जोड़ वही भगवान रिश्ते और मत डरा, ऐ जिंदगी।
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ReplyDeleteThanks for kind words .
Deleteबहूत खूब
ReplyDeleteधन्यवाद जी।
Deleteबहूत खूब
ReplyDeleteधन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ।
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