देश आज चीन से आई कोरोना महामारी से लड़ रहा है। लोग जिंदगी और मौत के बीच लटक रहे हैं। देश में लाखों लोग मर चुके हैं और लाखों अस्पतालों में जिंदगी और मौत से लड़ रहे हैं। परंतु इतनी भयावय हालात होते हुए भी किसी भी स्तर पर इस महामारी से लड़्ने के लिये कोई ठोस एवम गम्भीर प्रयास नहीं किये जा रहे हैं। सभी देश की जुगाड़ परम्परा का पालन कर रहे हैं और देश जुगाड़ जमात वालों का देश बन कर रह गया है।
इस दुखद वास्तविकता के लिये सभी दोषी हैं। केंद्र
सरकार, सभी राज्य सरकारें, नौकरशाह,
न्यापालिका, व्यापारी, गैर-सरकारी
संगठ्न, नागारिक आदि सभी इस भयावय स्थिति और मौतों के लिये
दोषी हैं। इस माहमारी को किसी ने भी गम्भीरता से नहीं लिया और सभी इस असफल जुगाड़
जमात की तरह काम करते रहे। इसका परिणाम यह रहा कि सारे देश में अरजकता की स्थिति
बन गयी। हालात इतने खराब थे कि अस्पताल में मरिजों के लिये बेड, आक्सिजन, वेंटिलेटर, आक्सिजन
कंसंट्रेटर, आई सी यू बेड, ऐम्बुलेंस
आदि एकदम या तो कम पड़ गये या खत्म हो गये। इतना ही नहीं अस्पतालों ने भी लूट मचानी
प्रारम्भ कर दी। यह हाल तो देश की राजधानी दिल्ली का है। अन्य स्थानों के हालात की
बात सोच कर ही डर लगता है।
बात नहीं खत्म नही हो जाती। चायना कोरोना के कारण
देश में दवा और इंजेक्शन की भी भारी कमी एवम मारामारी हो गयी। रेंडिसीवर इंजेक्शन, फेवीफ्लू, आईवरमिसिन आदि या तो बाज़ार से गायब हो गये
या कई गुना ज्यादा कीमत में मिल रहे थे। यही हाल आक्सिजन सिलेंन्डर, वेंटिलेटर, आक्सिजन कंसंट्रेटर, आक्सिमीटर का हो गया। दुकानदारों और व्यापारियों ने बाजार में लूट्मार
मचा दी। इतना ही नही, अंतिम संस्कार के लिये बाज़ार से लकड़ी
तक गायब हो गयी। सैकड़ों क्रूर लोग अपने सगे सम्बंधियों के शव नदियों में फेंक कर
भाग गये।
इसके बाद निर्लज्ज और गिद्ध पत्रकारों के टूलकिट का
विघटनकारी ऐजेन्डा का खेल प्रारम्भ होता है। उनकी पत्रकारिता और प्रेस की आजादी
हिन्दू शवदाह्ग्रह में हिन्दुऔं की जलती चितायें, लाइन में
पड़े हिन्दुऔं के शवों और नदियों में बहते शवों के आंखौं देखा हाल से प्रारम्भ होने
लगी। इन पत्रकारौं ने देश नें भय और नफरत की पत्रकारिता करने में कोई कोर कसर नहीं
छोड़ी। इतना ही नहीं तड़्पते मरीजों को दिखा कर भी इस लाबी ने निर्लज्ज्ता और घ्रणा
की सारी हदें पार कर दीं। इतना ही नही, कुछ पत्रकारों ने तो
निर्लज्ज्ता की सारी हदें पार कर दीं अपने अपने कैमरे हिंदुऔं की लाशों और जलती
चिताऔं पर ही फिट कर दिये। लेकिन एक भी संगठन हिंदुओं के शवों के अंतिम संस्कार के
लिये आगे नही आया।
एक और जहां हजारों मरीज रोज मर रहे थे तथा लाखों
अस्पतालों में जिंदगी और मौत से लड़ रहे हैं वहीं एक नया तमाशा और प्रारम्भ हो गया।
गुरुद्वारों, सत्संग भवन, स्कूल, कालिज, आदि में आक्सिजन लंगर,
कोविड बेड, आईसोलेशन सेंटर, आक्सिजन
कैफे, कंसंट्रेटर लाइब्रेली आदि का खेल प्रारम्भ हो गया। जहां
डाक्टर, नर्स, वेंटिलेटर, आई सी यू आदि एकदम गायब थे। इसके साथ-साथ सभी ने सेवा के नाम पर चंदा और धन
उगाहाना प्रारम्भ कर दिय। ऐसे नाटक मरीजों की सुरक्षा और जिंदगी के लिये गम्भीर
खतरा है। सरकार और प्रशासन इस तरह के खिलवाड़ पर सख्ती सख्ती से रोक लगायें।
इस आपदा के समय भी हिंदु विरोधी टूलकिट भी अपनी
सामप्रदायिक एवम घ्रणा की राजनिती में भी अत्यंत सक्रिय रहे। एन तत्वों ने हिंदु
कुम्भ पर्व एवम हिंदु संतों को कोरोना फैलाने का दोषी मानते हुये बदनाम करने की
पूरी साजिश रच डाली। पर ये तत्व ईद, इफ्तार पार्टी, जुम्मा नमाज, नमाजे जनाजा की भीण आदि पर एकदम चुप
रहे। इतना ही नहीं,
इन तत्वों ने सेवादार बनकर किसानों को अराजकता और प्रदर्शन के लिये भड़्काया। किसान
रैलियां, धरना, सड़्क जाम आदि के कारण
भी कोरोना माहमारी देश के अनेक भागों में फैली।
विपक्षी दलों ने देश के लोकतंत्र पर भी कोरोना के
नाम पर हमले शुरु कर दिये तथा चुनावों, मतदान और मतगणना
को भी कोरोना फैलाने का दोषी होने का आरोप लगाने लगे। इस कोरोना महामारी में जहां
एक ओर देश और नागरिक कोरोना महामारी से लड़ रहे थे वहीं दूसरी ओर विपक्षी दल, मीडिया, अल्पसंख्यक वर्ग,
एक्टिविस्ट, आदि देश, सरकार और हिंदुऔं
को बदनाम करने के लिये अत्यंत विघटनकारी टुलकिट के तहत अपना ऐजेंडा चला रहे थे।
इस वर्णन से स्पष्ट है कि आज देश एक बहुत ही खरब
दौर से गुजर रहा है। जहां देश और जनमानस कोरोना माहमारी से लड़ रहा है वहीं दुसरी
ओर एक राष्ट्र विरोधी टूलकिट अपनी खतरनाक साजिश के तहत देश में अराजकता और
खूनखराबा फैलाने की साजिश कर रहा है। इस संकट की घड़ी में केंद्र सरकार का दायित्व
बनता है कि वह इन दोनों खतरों को भापते हुये बहुत समझदारी तथा सख्ती से इन खतरों
का सामना करे।
सरकार का भी दायित्व एवम कर्तव्य है की वो अस्पताल
तथा स्वास्थ सेवायें पर युद्धस्तर पर ध्यान दे तथा इन क्षेत्रों में सरकार का
निवेश बढाया जाये। डाक्टरों और स्वास्थ कर्मियों को विषेश पैकेज, सुविधायें और अधिकार दिये जायं। अल्पसंख्यक तुष्टिकरण, जातिगत सामाजिक न्याय, मुफ्तखोरी, कर्जमाफी आदि पर धन की बरबादी को रोके तथा इस धन को अस्पताल तथा स्वास्थ
सेवाओं पर निवेश करे। अस्पताल तथा स्वास्थ सेवायें पर निवेश को हर प्रकार के कर से
मुक्त रखा जाये।
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