Friday, 23 April 2021

कहर क्यों बरपा

ये कोरोना का कहर,

बियाबान-उजड़्ते शहर।

वो तड़्पते मरीज,

सिसकती जिंदगियां।

बदहवास परिजन,

भरे अस्पताल,

खाली सिलेंडर,

थकते वेंटिलेटर,

टुटती सांसें,

श्मशान की लंबी कतारें,  

धधकती चिताओ,

के ठंडे होने के इंतज़ार में,

बेजुबान मुर्दे,

घूर रहे पथराई आंखों से,

शायद बहुत सताया होगा।

मानो कह रहे हों,

अब तो पीछा छोड़ो,

जाने दो भाई।

मुफ्त बिजली,

मुफ्त पानी,

मुफ्त बस पास,

सब बेकार,

किस काम की ये मुफ्तखोरी

बहुत लड़ लिये

इन पत्थर के इंसानों से,

शायद परलोक में कुछ

आराम मिल जाये,

और पीछे छूट जाये,

ये मौत का मंज़र

जहां इंसानों को

इंसान समझा जाये।

 

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1 Comments:

At 24 April 2021 at 03:40 , Blogger Amit Agarwal said...

सामयिक यथार्थ का मार्मिक चित्रण!

 

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