दिन भी लौट कर आतें हैं,
और रात भी लौट कर आतीं हैं,
लौट कर पतझड़ भी आता है,
और वसंत भी लौट कर आती है।
जिंदगी की अंधी भागम-भाग में,
कभी खुशियॉ लौट कर आतीं हैं,
तो कभी प्यार लौट कर आता है,
तो कभी गम भी लौट आते हैं।
तेजी से भागती इस उम्र में,
यादें भी चुपके से लौट आती हैं,
और मन के बोर्ड पर बंधे नुपुर,
कभी भी खंखनाने आ जाते हैं।
उस-पार जाने के लिये पुल आता है,
भुलाने के लिये गम मधुशाला याद आती हैं,
फिर से धुंधले हो चुके आखरों पर,
फिर वसंत ऋतु लौट कर भी आती है।
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