Sunday 17 May 2020

ये मंज़र भी गुज़र जायेगा


गुज़र जायेगा ये मंज़र  भी,
ये खौफ भी, ये सन्नाटा भी
मुश्किल डगर है, मुश्किल वक्त है,  
पर विश्वास रख, सब गुज़र जायेगा।
सांसें चलतीं रहीं,
तो आ जायेगा फिर सब कुछ
मौत बरपा रही है, एक अनसुना कहर,
रात काली और डरावनी हो रही है,
लोग रातें गुज़ार रहे हैं,
दहलीज पर, अपनों के इंतजार मे,
और कुछ दहलीज छुने के लिये,
तड़्प रहे हैं, भटक रहे हैं,
बियावान-डरावनी सड़्को पर्।
सब डरे, सहमे चुप बैठै हैं।
पर भरोसा रख,
दुनिया बनाने वाले पर,
ये खौफ भी गुज़र जायेगा और वक्त भी।
वीरान सड‌कें,
सुने बाज़ार,
बियावान मोहल्ले,
बच्चों का इंतजार करते स्कूल,
बस कुछ डरे-भटके कदमों की आहट,
चारॉ तरफ मंज़र, एक खौफनाक कहर का,
हर शक्स हैरान और परेशान।
ये कौनसा कहर,
दुनिया को डराने आया
ना समझ है ये,
इंसानॉ से टकराने आया,
काली-बियावान रात गवाह है,
ये खौफ भी, खौफ खा जायेगा।
हौसला बनाये रख ऐ इंसान!
सब्र खो गया है, टुटा नहीं,
ये लम्हा भी सुलझ जायेगा,
और ये खौफ भी हार जायेगा। 
और एक नया सवेरा भी आ जायेगा।


 

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