शुक्रकर भगवान का,
कि तू है घर-परिवार के
साथ्।
देख उस अभागे को,
जो भटक रहा है, सुनसान सड़्क पर।
कहीं घर की दहलीज नसीब नहीं,
किसी को आखिरी लम्हॉं में,
बेटा भटक रहा है
बियाबान सड़्कों पर,
और बाप दफन हो रहा है
लावारिस, कब्र में।
शुक्र है, चुल्हा तेरा जल रहा है,
तू सुबह सहरी, रात में इफ्तहार,
भोग रहा है।
कहीं एक राहगीर भी रह गया
है,
जो एक रोटी के लिये तड़्प
रहा है।
क्यों हो रहा है उतावला,
ईद पर गले मिलने के लिये,
सोच उस अभागी कायनात का,
जो बच्चों को देखे बिना ही,
कह गया दुनिया को अलविदा।
अब तू किसी भ्रम में ना
रहना,
ना ऊपर वाला तेरे को बचा
पायेगा,
और ना नीचे वाला कुछ कर
पायेगा,
इंसानों की इबादत पर हंस कर
बोला वो,
अपने पापों को मुझ पर ना
धोया कर,
अपने कर्मों को तू खुद देखा
कर्।
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