जिंदगी के परम बान
पेड् हरे हैं, भरे हैं और घने हैं,
रखते काली दुनिया को साफ हैं,
प्रक्रति मां को रखते ठीक हैं,
जग को सुंदरता करते बहाल हैं।
झर-झर करती वर्षा आती है,
धरा को नहला कर करती साफ है,
नये पौधे धरा को दिखाते आंख है,
नर-नारी करते हर्ष-नाद हैं।
आप जैसा दानी, कोई दुसरा नहीं है,
तुम ना हो तो, जीवन नहीं है,
जिसको सींचा प्रभु ने, ये बही नाम है,
जग लुभाती, ये वही राग है।
जग की शक्ति, यही शान है,
जिंदगी के लिये परम बागबान है।
Labels: पर्यावरण
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