Wednesday, 16 September 2020

जय निठ्ल्ले

 

बैठे थे दो आज निठ्ल्ले,

खा रहे थे भुने छ्ल्ले, 

सोच रहे थे जुमले-वूमले,

नाच रहे थे बल्ले-बल्ले।

 

पडे‌ थे रात में थल्ले-थल्ले,  

सूत रहे थे मुफ्त के भल्ले,

खुशी से हो रहे पिल्ले-पिल्ले,  

हवा से कर रहे लव रिले-डिले।

 

बना रहे थे हवाई किले,  

झूम रहे थे हल्ले-हल्ले,

गरज रहे थे-भोले-भोले,

नाच रहे थे जय-बम भोले।

जय सुफी बाबा गुलछर्रे, 

बने रहेंगे तेरे चेले निठल्ले।

 

 

No comments:

Post a Comment