कहते हैं दिल्ली हिंदुस्तान का दिल है। अगर दिल्ली को बुखार
आता है तो जुकाम सारे देश को हो जाता है। दिल्ली के
मुख्यमंत्री की खांसी आज सारे देश की चिंता बन गयी है। परन्तु आज दिल्ली अपनी
अशुद्ध हिंदी के प्रयोग के लिये बदनाम हो चुकी है। दिल्ली मे अनपढ और पढे लिखे सभी
अब अशुद्ध हिंदी बोलते हैं।
आज हर व्यक्ति के पास मोबाईल फोन है। परन्तु
फोन के उपयोग के बारे मे सभी अशुद्ध हिंदी का प्रयोग करते हैं। उदाहरण के लिये, फोन करने के लिये, ‘एक फोन मार देना।‘ इसी प्रकार, मिस काल करने के लिये, ‘एक मिस काल मार देना।‘ हिंदी व्याकरण के
अनुसार दोनों उपयोग गलत हैं। ‘मारना’ कोई वस्तु
शारीरिक रुप से मारने के लिये उपयोग होती है तथा एक हिंसक क्रिया है। फोन कर देना
और मिस काल कर देना सही उपयुक्त वाक्य हैं।
वस्त्र पहनने के लिये ‘डाल’ शब्द का उपयोग करते हैं। जैसे ‘कोट डाल लिया’, ‘शाल डाल लिया’, आदि। यह भी एकदम अशुद्ध है। वस्त्र
उपयोग के लिये ‘पहनना’ एकादम उपयुक्त शब्द है। ‘डालना’ शब्द गलत अर्थ में उपयोग होता है।
जैसे कफन डालना, आदि।
इसी प्रकार ‘पड़ा’ शब्द भी गलत स्थान पर उपयोग होता
है, जैसे ‘खाना पड़ा है’, ‘पैसे-रुपये पड़े हैं’, ‘किताब पड़ी हैं’ आदि। यह एकदम गलत उपयोग है।
वास्तव में पड़ा शब्द का सही उपयोग है, जैसे ‘ कूड़ा पड़ा ‘, ‘लाश पड़ी है’ आदि सही उपयोग हैं। खाना, किताब, पैसे-रुपये आदि के लिये रखा शब्द
उचित है।
एक अन्य हिंदी शब्द ‘उठाना’ जिसका बहुत ज्यादा दुरुपयोग होता।
इस शब्द को दिल्लीवासी हमेशा ही गलत तरीके से उपयोग करते है जैसे ‘बच्चे उठाने हैं’, ‘पत्नी उठानी है’’, ‘रुपया उठाना है’, ‘डोली उठानी है’ आदि। ये सभी उपयोग गलत हैं। ‘पत्नी, बच्चों को साथ लेना’ सही उपयोग है। ‘डोली विदा’ होती है। निर्जीव सामान, व्यक्ति, अर्थी अथवा लाश को उठाया जाता है।
जब दिल्ली में विवाह-सम्बंध के लिये कोई
परिवार अथवा व्यक्ति आता है तो उसका परिचय ‘पार्टी’ के रुप मे संबोधन
किया जाता है। जैसे ‘शादी के लिये पार्टियां’ आ रहीं हैं। जबकी ‘पार्टी’ शब्द यहां एकदम गलत है। ‘पार्टी’ से मतलब
हास्य-विनोद-मनोरंजनक आयोजन अथवा राजनीतिक लोगों के समूह से होता है। विवाह-संबंध
एक पवित्र रिश्ता है। यहां पार्टी सम्बोधन एकदम गलत उपयोग है।
महिलायें भी आपस मे लिंग सम्बोधन मे गलत
शब्द का उपयोग करतीं हैं। जैसे आप ‘आते हो’, ‘खाते हो’, ‘जाते हो’, ‘पहनते हो’, आदि। जोकि स्त्रिलिंग के उपयोग के अनुसार अनुचित है। स्त्रिलिंग के अनुसार ‘आती हो,’, ‘जाती हो’, ‘खाती हो’, पहनती हो’ आदि होना चाहिये।
रिश्तों के संबोधन में भी दिल्लीवासी अशुद्ध हो गये हैं। जैसे चाचा को चाचू, दादा को दादू, नाना को नानू, जिजा को जीजू, मामा को मामू आदि। इतना ही नहीं कुछ प्रगतीशील-सेक्यूलर लोगों ने इससे भी आगे
चाचा को छोटे-पापा, ताऊ को बडे-पापा, चाची को छोटी-मम्मी, ताई को बडी-मम्मी, दादा को ददा-पापा, नाना को नाना-पापा आदि सम्बोधन भ्रष्ठ कर दिये हैं। वास्तविकता यह है कि
मम्मी-पापा सिर्फ एक ही हो सकते हैं और उनके सभी प्रकार के सम्बंध होते हैं। कोई
भी पापा-मम्मी का स्थान नही ले सकता। कोई भी छोटा-बडा, दादा-नाना, पापा-मम्मी नही हो सकते। मम्मी-पापा दूसरे हो ही नही सकते।
इतना ही नहीं दिल्लीवासी अब अश्लील शब्द
भी निसंकोच ही नही, बडी शान से बोलते हैं। जैसे भसड़, खड़ूस, यार, लोंडा, मेरी फट गयी आदि। ये सभी शब्द
अत्यंत असम्मानीय एवम अभद्र हैं। जैसे ‘यार’ का प्राचीन अर्थ, वेश्या का दलाल होता था। इसी तरह ‘लोंडा’ वेश्याऑ के कोठे पर काम करने वाला
लड़्का कहलाता था। इस्लामिक राष्ट्रों मे छोटे लड़्कों को नपुंसक करके वेश्या के रूप
मे उपयोग होने वाले लड्कॉ को लोंडा कहा जाता है।
इस सारे वर्णन से स्पष्ट हे कि
दिल्लीवासी हिंदी भाषा को एकदम अभद्र एवम अशुद्ध रूप से बोलते हैं। देश की राजधानी
होने के कारण दिल्लीवासियॉं का यह दायित्व बनता है कि वे राष्ट्रभाषा का सही ही
नहीं अपितु उच्च स्तर का प्रयोग करें जिससे कि सारा राष्ट्र राष्ट्रभाषा हिंदी का
सही प्रयोग करके राष्ट्रभाषा का गौरव बढा सके।
ज़्यादातर जगह ढ इस्तेमाल किया गया है जो कि ग़लत है सही "ढ़" है। बाक़ी कुल मिलाकर सटीक और सराहनीय प्रयास है। दिल्ली की अपनी भाषा नहीं है बल्कि सारे देश के लोगों के साथ रहनें के कारण खिचड़ी भाषा बन गई है और इसका अपना अलग ही ज़ायका है। विशुद्ध हिंदी तो इलाहाबाद और लखनऊ की होती है।
ReplyDeleteधन्यवाद।
Delete