मौत का पैगाम
अबके बसंत में शरारत मेरे साथ हुई,
पतझड़ मेरे बाग में और आतंकी के बरसात हुई।
दुनिया हँसने लगी मेरे दर्दे दिल पर,
मै कराह रहा था और वहां आतिशबाजी हुई।
सदियों से पाठ प्रेम का पढ्ते पढाते रहे,
पर बदले मै हम पर खून की बारिश हुई।
हर दिन हर रात पिट कर हम सोये,
पर उनके दिल मे रहम की आहट ना हुई।
मैंने पूछा कि कहीं प्यार की बयार चली ?
तभी कातिलों ने कलेजे पर खंजर घुमाई।
ये पैगामे मौहब्बत सब फरेब है मेरे भाई,
उनके लिये मौत का पैगाम ही इबादत हुई।
Labels: व्यंग
0 Comments:
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home