छ: महीने
के जिगर के टुकडे को,
छोड् कर, आया के पास;
नौकरी पर भागते
हुए;
रोक कर, माँ को, आया ने पूछा:...
"कुछ
छूट तो नहीं गया? मेम
साहब!
पेपर, फाईल, चाबी, पर्स, टिफिन, पानी,
सब ले
लिया ना...?"
ढ्बढबाई आंखों
से आंसुओं को पौंछ्ते,
अब वो अभागी
मां, क्या कहे...
पेट के लिये, भागते भागते...
घर को
खुशहाल बनाने की भागम-भाग में,
वो जिसके
लिये भाग रही है,
वही अभागा, वही रोता हुआ,
पीछे छूट गया...!
विदाई के
समय,
बेटी को
विदा करते हुए,
पंडाल से सब
मेहमानों के जाने के बाद,
मां ने
पिछे से आवाज लगाई,...
"सुनो
जी, कुछ छूट
तो नहीं गया...?
एक बार फिर ठीक से देख लेना...!"
ढ्बढबाई आंखों
से आंसुओं को पौंछ्ते,
पिता कहे
तो क्या कहे;...
दुबारा
देखने गया,
तो बिटिया
के पलंग के पास,
कुछ
मुर्झाये पड़े फूल मुस्कराये...
और बोले:...
बरखुरदार
अब देखने के लिये,
क्या बचा
है ?
सब कुछ तो
चला गया...।
बरसों तक
जो एक आवाज पर,
भागी चली
आती थी,
वो आज एक
नये घर् की,
आवाज बन गयी।
पीछे छूट
गया वो नाम और
जुड् गया एक
और नाम,
उस नाम के
साथ....।
बरसों गर्व
से जो लगता था कुलनाम,
वो नाम भी
तो पीछे छूट गया अब...
"देखा
आपने क्या...?
कुछ पीछे छूट
तो नहीं गया ?"
पत्नी के
इस सवाल पर ढ्बढबाई आंखों से,
आंसुओं को
पौंछ्ते, पिता बुदबुदाया...
छूटने के
लिये बचा ही क्या है अब ?
सब कुछ तो
चला गया...।
बड़ी हसरतों
के साथ,
बेटे को पढाने
के बाद,
विदेश
भेजा था कुछ कमाने के लिये,
पर वह तो वहीं
बस कर खो गया।
पोते के जन्म
पर, बड़े अनुरोध पर,
एक माह का
वीसा बनवाया।
वापस आते हुए बेटे ने पूछा...
"सब
कुछ ध्यान से रख लिया पिताजी...?
कुछ छूट
तो नहीं गया...?"
अपने पोते
को आखिरी बार देख्कर,
बूढे
माता-पिता बुदबुदाये,
सब कुछ तो
यहीं छूट गया...
अब छूटने
को बस खाली घर ही तो
है तो हमारे
पास ...!
रिटायरमेंट
की शाम
विदाई
देते छात्रों ने मास्टर जी से पूछा…
"चेक
कर लें गुरु जी...!
कुछ छूट तो
नहीं गया...? "
थोड़ा लंबा सांस लिया, गुरु जी ने...
और बोले कि
पूरा जीवन तो तुम्हारे साथ,
पढ्ते-पढ़ाते
बीत गया,..
और अब तुम
ही छूट गये,
अब और छूटने
को बचा ही क्या है...?
श्मशान से
लौटते समय बेटे ने,
एक बार
फिर से चेहरा घुमाया,
एक बार
पीछे मुड़ कर देखने के लिए...
मां को चिता
में जलते देखकर,
मन भर
आया...
भागते हुए
वापस गया,
मां के
चेहरे की अंतिम झलक पाने के लिये
और अपने
लिये,
मां की
आंखों में प्यार देखने के लिये,
पर वहां
सिर्फ लाल लपटें ही थीं।
पिता ने
पूछा...
"कुछ
छूट गया था क्या बेटा...?"
ढ्बढबाई आंखों
से आंसुओं को पौंछ्ते,
बेटा
बुदबुदाया...
नहीं कुछ
भी नहीं छूटा...
और जो भी
कुछ मां का छूट गया है...
अब सदा ही
मेरे साथ रहेगा...!
रिटायरमेंट
की आखिरी परेड में,
विदाई
देते जवानों ने,
अपने
कमांडर से ने पूछा…
"चेक
कर लें सर...!
कुछ छूट तो
नहीं गया...? "
कमांडर ने एक लंबा सांस लिया,
और बोला कि
पूरा जीवन तो तुम्हारे साथ,
सरहदों की
रक्षा करते-करते बिता दिया,,..
अब सब
तुम्हारे पास ही छोड़ कर जा रहा हूं...
इसे संभाल
के रखना मेरे साथियों ।