Tuesday, 3 December 2019

देखा नहीं जाता


अपने मुल्क का नज़ारा, सहा नहीं जाता;
दहलीज़ से बाहर का खौफ देखा नहीं जाता:
गुंगे-बहरौं की बसेरा है साहब, देखा नहीं जाता ;       
अबला की लुटती आबरू पर, कोई तबज्जो देता नहीं जाता ।

चोटी से ऐड़ी तक, सिहरता जिस्म, देखा नहीं जाता,
कच्ची उम्र की कलियों का मसला जिस्म देखा नहीं जाता;
रोते चमन में, ज़ामों का खनकना देखा नहीं जाता;
नफरतों के इस दौर में, महफिलों का सजना, देखा नहीं जाता ।

लाखों बे-ज़मीरों का मजमा, जिहदियों के ज़नाज़ों में, देखा नहीं जाता;
और वशिष्ठ नारायण का लावरिस शव, देखा नही जाता;
दबी लाचार सिसकती सड़्कों पर, खूनी दहशतगर्द देखा नहीं जाता;
मौत की वदियों में, हंसते-खेलते बेखौफ कातिल देखा नहीं जाता।      

बर्फ से सूजे कानों पर, बहशियों का अट्टाहास, देखा नहीं जता:
खोख्ले नारों का सौदगर, पैगम्बर, देखा नहीं जाता;
लगाई आग पर, सेकता कसाई देखा नहीं जाता;
दर्द के खलिफाओं की आवाज़ और आगाज, देखा नहीं जाता

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