दो दिन की यह हताशा,
सब भूल जायेंगे यह
तमाशा।
इसकी यादें खठ्ठी-मीठी
फिर,
सतायेंगी बनके एक मुसाफिर्।
यही है जिंदगी का मेला,
साकार होने का सिर्फ झमेला,
इंतजार ही इंतजार,
रहते हैं सब बड़े लाचार्।
नफरतों को भूलना सीखो,
मोहब्बतों में जीना सीखो,
यह ठिखाना मेरा है, न तेरा,
दुनिया के फरेबों को ठोकना सीखो।
दूसरा शो सिर्फ होता है ख्वाबों में,
दूबारा नहीं होता कुछ जिंदगी में,
सभी जी लेते हैं खुशियों में,
कभी गमों भी में जीना सीखो।
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