Friday, 31 January 2020

A Song of My Nation



O My awareness!
Get up quietly in blameless purity,
On this pious land of pious faith. 
Standing here,
I bow to Krishna Consciousness,
Both hands folded, in gracious rhymes,
With the highest joy,
I surrender and sing hymns in his devotion.
These mystifying mountains housing Yogis and Rishis; 
River rosaries, greening wilderness,
Nurturing the greatest and the oldest civilization. 
Here the divine land chimes the greatest souls, 
Plundered by streams of brutes,
Of so many uncivilized shores, 
Raided here from on tumultuous currents,
Carry ugliness from stifling terrains.
Aryans, non-Aryans, Dravidians, Mongols;
Hans, Huns, Mughals, Christians, 
Opened doors to all, rotten this pious land.
Few give but most looted,
Some merged but some divided,
But nobody to go back ancestors' land.
On this land of Sanatan Dharma,
Come Hans, come Huns, come Muslims, come Christians,
Come Jihadists, come Naxals;
Cleanse your hands, and purify your mind and souls,
Hold the hand and embrace everyone,
Come, O fallen! and forget the past,
Come, to Mother's meditation quick,
And dissolve in pious Krishna Consciousness
Take a dip in the Holy waters of Ganga,
Today on the on this pious land of pious faith,
And chant Hare Rama Hare Krishna.                                                                  










Wednesday, 29 January 2020

माँ का चौका





माँ का वो चौका,
ना वो कोई किचन था, ना कोई रसोई,
खाने के साथ, प्यार था भर पेट जहां

कुछ ईंट, कुछ मिट्टी, कुछ गोबर,
अपने ज्ञान से, खाली एक साफ कोने में,
मोड्युलर किचन से भी आगे, बनाया था एक घर।

तृप्त खाने के साथ, जहाँ होता था,
चिंता, प्यार, अपनापन रिश्ते-नातों का सार,
और एक असिमित ज्ञान का भंडार्।           

नहाये बिना, चुल्हा कभी जला नहीं,
सर्दी हो या हो गर्मी, बीमार हो या स्वस्थ,
लगता था भोग भगवान का पहले सबसे।

पहली रोटी गऊ-ग्रास की और आखिरी कुत्ते की,
मेहमान हो या हो अनजान,
रखती थी वो सबका मान।  

लाइन में करीने से लगे सभी डिब्बे,
भरे रहते थे, बेखबर बाजार की मार से,
कुछ डिब्बे होते थे रिजर्ब अन्जानी ब्यार के।

गुँजिया, लड्डू, मिठाई, घेवर,
गुलाम होते थे, मेरी माँ के ज्ञान के,
पर हमारी भूखी तीखी आंखॉं के होते थे वे तारे ।   

खुद खाती थी हमेशा सबके बाद,
जब हम तृप्त-गर्म खाने के बाद,
होते थे सोये कम्बल और रजाई में।

आज सब कुछ नया-नया है, मोड्युलर किचन में,
स्टोव, गैस, मिक्सी, फ्रिज, ओवन,
पर नही है तो ताजा-गर्म भरपेट खाना।

भोजन बन गया लंच-डिनर,
चिंता, प्यार, अपनापन रिश्ते-नातों की सार,
सब कुछ विदा हो गया मां के साथ्।

माँ की अर्थी क्या उठी, उठ गयी,
अनमोल आवाज, बेहिसाब चिंता, तृप्त पेट,
उजड गयी एक सभ्यता, रह गयी सताती याद्।

वो खाली चौका, वो मिट्टी का चुल्हा,
प्यारी झिड्की, चेहरे पर गुस्सा, आँख मे पानी,
एक गहरी सकून, बस बन गया एक दुखद अतीत।

माँ की चिता की गगन चूमती लपटें, राख हो गयीं,
प्यारी झिड्की, मिठाईयां, आंख का पनी, मिट्टी का चूल्हा,  
और पीछे छुट गयीं बिलखती यादॅ और एक ठंडा चुल्हा।

Delhi



I loiter through each chaotic but crowded street,
Near there ugly but once pious Yamuna blow,
I saw the pain on every face I meet and greet,
Saw wrinkles of exhaustion and strain of woe. 

In every a tear of each human,
In every shrill of every child in fear,
In each scary voice, in every nook and turn,   
The disturbing hunger and terror, I hear.

How the fake learner dying for freebies high;
Every charted institution brutally trolls,
And the nationalist and brave soldiers sigh,
Walls of high rising splattered in blood boils.

But in the dark midnight, in a garden, I hear,
How the covered Harlots, veiled sit in, rejoice,
Laughs at the pains of commuters tear,
And enjoys with the plague of a secular curse.          



Saturday, 11 January 2020

पिटता, सिसकता, भागता कौन?



काशमीर से पिट कर भागा कौन ? हम हैं हिंदु ।
पाकिस्तान से पिट कर भागा कौन ? हम हैं हिंदु ।
बंगलादेश से पिट कर भागा कौन ? हम हैं हिंदु ।
अफगानिस्तान से पिट कर भागा कौन ? हम हैं हिंदु ।
पिटता, सिसकता, भागता कौन ? हम हैं हिंदु ।

मल्लापुरम से भागा  कौन ? हम हैं हिंदु ।
कैराना से भागा कौन ? हम हैं हिंदु ।
मालदा से भागा कौन ? हम हैं हिंदु ।
सिवान से भागा कौन ? हम हैं हिंदु ।
पिटता, सिसकता, भागता कौन ? हम हैं हिंदु ।

आतंकवाद ने मारा कौन ? हम हैं हिंदु ।
नक्सलवादियॉ ने मारा कौन? हम हैं हिंदु ।
जिहादियॉ ने मारा कौन ? हम हैं हिंदु ।
खालिस्तानियॉ ने मारा कौन ? हम हैं हिंदु ।
पिटता, सिसकता, भागता कौन ? हम हैं हिंदु ।

सेकुलर वाद से पिटा कौन ? हम हैं हिंदु ।
कानून से पिटा कौन ? हम हैं हिंदु ।
लालाच से पिटा कौन ? हम हैं हिंदु ।
बेचकर वोट पिटा कौन ? हम हैं हिंदु ।
पिटता, सिसकता, भागता कौन ? हम हैं हिंदु ।

मेंकाले शिक्षा से पिटा कौन ? हम हैं हिंदु ।
दंगों में लुटा कौन ? हम हैं हिंदु ।
मुफ्तखोरॉ से लुटा कौन ? हम हैं हिंदु ।
मिशनरियों ने खरीदा कौन ? हम हैं हिंदु ।
पिटता, सिसकता, भागता कौन ? हम हैं हिंदु ।

जुल्म-अन्नाय से पिटा कौन ? हम हैं हिंदु ।
वाम-पंथियॉ से पिटा कौन ? हम हैं हिंदु ।
स्वार्थ में डूबा-पिटा कौन ? हम हैं हिंदु ।
डर के मारे मरा कौन ? हम हैं हिंदु ।
पिटता, सिसकता, भागता कौन ? हम हैं हिंदु ।




Wednesday, 8 January 2020

हर कोई मांगे आजादी



हर कोई मांगे आजादी, देश भी मांगे आजादी;
जनता भी मांगे आजादी, छात्र भी मांगे आजादी;
युवा भी मांगे आजादी, नारी भी मांगे आजादी;
किसान भी मांगे आजादी, मजदूर भी मांगे आजादी;
हर कोई मांगे आजादी, देश भी मांगे आजादी

आतंकवाद से आजादी, जिहादियों से आजादी;
कट्टरवाद से आजादी, नक्सलवाद से आजादी;
दंगों से मांगें आजादी, घुसपैठियों से आजादी,
टुकडे गैंग से आजादी, पत्थरबाजॉ से मांगे आजादी;
हर कोई मांगे आजादी, देश भी मांगे आजादी

भ्रष्टाचार से मांगे आजादी, पलायन से मांगे आजादी,
गरीबी से मांगे आजादी, भूख से मांगे आजादी;
कुपोषण से मांगे आजादी, अशिक्षा से मांगे आजादी;
बेरोजगारी से मांगे आजादी, महगाई से मांगे आजादी;
हर कोई मांगे आजादी, देश भी मांगे आजादी|

मुफ्तखोरॉ से मांगे आजादी, आरक्षण से मांगे आजादी;
भेद-भाव से आजादी; माफियाऑ से मांगे आजादी;
अन्नाय से मांगे आजादी, मिशनरियों से मांगे आजादी;


प्रदुषण से मांगे आजादी; ट्रेफिक-जाम से मांगे आजादी,
हर कोई मांगे आजादी, देश भी मांगे आजादी

जुल्मों से मांगे आजादी, शोषण से मांगे आजादी;
सेकुलर फ्राड से मांगे आजादी, हिंसा से मांगे आजादी;
छेड-छड से आजादी, मँकाले शिक्षा से आजादी;
भौतिकवाद से मांगे आजादी, परिवार-वाद से आजादी;
हर कोई मांगे आजादी, देश भी मांगे आजादी