तलाश
बर्फ का होकर, इंसान जी रहा है, 
मोम के पिघ्लते मकान
मे, अलाव सेक रहा है। 
कोहरे से ढ्के ऑसमा मे, सूरज तलाश रहा है, 
जिहादिऑ के इबादतखाने
मे, खुदा तलाश रहा है। 
खाल शेर की पहन कर, गद्दार शिवाजी बन रहा है, 
और आतंकियॉ के जनाजे
मे, मातम मना रहा है। 
बबूल के कांटॉ मे, गुलाब
तलाश रहा है, 
और इंसान मौत के मातम मे, आंसूं तलाश रहा है। 
शराब की बोतल मे, शहद तलाश
रहा है, 
खाली लिफाफॉं मे, औलाद
तलाश रहा है।
मकान की दहलीज पर, आह्ट
तलाश रहा है, 
और भागती इस जिंदगी मे, सुकुन तलाश रहा है। 



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