जिंन्दगी के अफसाने
जिंन्दगी की, ... 
इस दौड़्ती-भागती धारा मै,...
अपने बचे-कुचे-रूठे वर्षॉ का,.. 
क्या चिंता-हिसाब रखें,.. !! 
जिंदगी ने, .. 
लुटाया सब-कुछ जब इतना, .. 
बेशुमार-बेहिसाब यहाँ,..
क्यौ करॅ उसकी चिंता,जो मिला नही, देखा नहीं,..!! 
जिंदगी ने,..
रिश्ते-नातौ ने,…
लुटाया है,  इतना प्यार हम पर, .. 
तो जो ना मिला, उसका क्या हिसाब करँ.. !! 
रातै हैं,…
चांदनी से भरापूर यहाँ,.. 
तो दिन के उजालॉ की,.. 
चिंता क्या करॉ.. !! 
खुशी का एक ही पल,..
काफी हैं, हसने-मुस्कराने के लिये .. 
तो फिर चिंताऑ और उदासियों का,.. 
डर और विचार क्या रखें .. !! 
खूबसूरत, यादों और रातँ के मंजर,... 
हैं इतने, जिंदगानी में,...
तो दुःख की बातों की,... 
बे-बजाह परवाह क्यॉ करँ...!! 
मिली हैं खुशियॉ यहाँ,. ..
इतनी अपने और परायॉ से,.. 
तो फिर दुःख और दर्द की,.. 
घुटन को याद क्यॉ रखें...!!
चाँद की चाँदनी और ठंढक,...
जब खुशनुमा इतनी है,...
तो सूरज के उजालॉ का, ... 
कोई ध्यान क्यॉ रखें... !! 
जब यादॉ से,.. 
ही दिल नाचने लगे,... 
और दिमाग खुशियॉ से खिल जाये,...
तो दिल और दिमाग को गिले-शिकवॉ से खोकला
क्यॉ करॅ ... !! 
सब- कुछ बहुत,.. 
है अच्छा इस जिंन्दगी मे,... 
और खेलते-कूदते समय भाग जाता है,… 
तो फिर मौत से डर क्यॉ रखें... !!!



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