Wednesday, 29 August 2018

Forget Me Not



Love me always; the world is grief-stricken,
Keep me and talk to me in your eyes and heart,
I can't swallow, the pain of separation'
Preserve me protected in your heart.

Lengthy as tresses the dark of separation,
The time of love is little as life,
If you are not with me, O Sakha,
How can I pass the dark and long nights of darkness?

Two thrilling hearts with a thousand dreams,
Have put my all the woes, rest to run,
Now, who would understand, to move and tell,
My dear love of me sad and miserable heart.

As a candle to a flying bug, or an atom to an eye,
So no solace in my heart and no sleep in my eyes,
Deprived, alas! From that Sakha's love,
He mails no message, nor shows his visage. 

At the time of love, for truth, Yogesh
My loved Sakha fooled me and flew away,
If I could get him again, I will keep, 
HIM in my eyes and heart, forever and forever.




N.B.: Sakha- Lover and friend. In Hindu mythology, the Brij region devotes of Lord Krishna, treat the Lord as Sakha or friend. (Lover).

Sunday, 19 August 2018

ट्रांस्फर पोस्टिंग का राष्ट्रीय गोरख धंधा

देश मे लगभग तीन करोड़ सरकारी कर्मचारी हैं। इनमे केंद्र सरकार, राज्य सरकार, पब्लिक सेक्टर निगम, (पी.स.यू), बैंक, स्वायत संस्थाऐ,सेना, लोकल संस्थाऐ आदी सम्मलित हैं। परंतु सभी विभाग एवम सस्थाऑ मै एक पोलिसी से सभी त्रस्त, रहते हैं। वह डरावनी पोलिसी ट्रांस्फर पोस्टिंग का राष्ट्रीय गोरख धंधा है।
इसी भृष्ट खेल मे राज्य सरकारै, केंद्र सरकारै, सभी विभाग, सभी संस्थाँयै सम्मलित हैं। प्रति वर्ष लाखौ कर्मचारियौ को बिना किसी कारड़ के इध्रर से उधर फैक दिया जाता है। सरकार का हजारौ-लाकौ करौड़ रुपया व्यर्थ मै ही बरबाद हो जाता है। इसके अतिरिक्त लाखौ-करौडौ का लेन-देन, ट्रांस्फर-पोस्टिंग करवाने और रुकवाने मै होता है। ये देश मै भ्रष्ताचार का खुला एवम सबसे बड़ा  गोरख-धंधा है। पर सभी इसमे सम्मलित हैं, और सभी चुप रहते हैं।
इस ट्रांस्फर पोस्टिंग के खेल मै न तो सरकार और विभाग को कोई लाभ होता है और ना ही कर्मचारी को किसी प्रकार का आर्थिक अथवा प्रशासनिक लाभ होता है। उदाहरण के लिये, अगार बँक मै कोइ ट्रांस्फर होता है तो बँकको उस कर्मचारी को तबादला भत्ता, तबादला अवकाश तथा सामान लाने-ले जाने एवम खरीदने पर लाखौ रुपये का भार उठाना पड़्ता है। कर्मचारी का सारा परिवार अस्त्-व्यस्त एवम डिस्टर्ब हो जाता है। बच्चौ की पढाई-लिखाई, स्वास्थ आदि सभी डिस्टर्ब हो जाते हैं।
लगभग पहला वर्ष उसे अपने कार्य एवम स्थान को समझने मै ही लग जाते हैं। इसके अलावा उसे अपने परिवार को भी अलग से व्यवसथितकरने मॅ उसे अपने संसाधन एवम उर्जा बर्बाद करनी पड़ती है। इसके उपरांत वह बाकी उर्जा एवम संसाधन को पुन: अपनी पसंद के स्थान पर ट्रांस्फर पोस्टिंग के सभी शस्त्रौ का उपयोग करता है।
यहॉ यहा भी सर्वविदित है कि इतना सब होने के बाद भी देश मॅ किसी बैंक की कार्यप्रणाली एवम हालात से कोई भी संतुश्ट नही है। सभी बैकौ की हालत अत्यंत खराब है. तथा उनकी कार्य प्रणाली से कोई भी संतुश्ट नही है। बैकौ की खराब हालत एवम कार्यप्रणाली के पीछे कर्मचारीयॉ को प्रताणित करने वाली ट्रांस्फर-पोस्टिंग की गलत नीतियॉ हैं।
यही हालत सभी बैंक एवम विभागॉ की है। सभी सरकारी विभाग, अर्ध सरकारी विभाग, निगम, आदि इस व्यवस्था से त्रस्त है। बॅकर, शिक्षक,डाक्टर, क्लर्क, इंजीनियर, आदि सभी नियमित रुप से इस व्यवस्था का दंश एवम आतंक झेलते हैं।
ट्रांस्फर-पोस्टिंग इस देश का सबसे बड़ा गोरख-धंधा एवम सबसे भ्र्रष्ट्तम उद्दोग है। सभी इस भ्र्रष्ट्तम उद्दोग को भलिभांती जानते परंतु इसे रोकने का कोइ भी प्रयत्न नही करता है। इस उद्दोग से जहाँ सरकार पर भारी आर्थिक बोझा पड़ता है वही‌ प्रशासन, शासन, एवम विभगॉ की व्यवस्था बिखरकर एकदम चौपट हो जाती है।
इस ट्रांस्फर-पोस्टिंग की व्यवस्था से किसी भी प्रकार का लाभ नही होता है। इससे ना तो कोई आर्थिक लाभ होता है। इससे समाज को भी किसी प्रकार का लाभ नही होता है। अब राश्ट्र एवम समाज के हित मै यह अत्यंत आवशयक है कि ट्रांस्फर-पोस्टिंग की इस व्यवस्था को एक दम बंद कर दिया जाये या इस व्यवस्था मे आमूल परिवर्तन किया जाये।
इस बारे मै, उत्तर-प्रदेश के मुख्य-मंत्री श्री योगी आदित्य नाथ जी की पहल अनुकरणीय एवम सरहनीय है। उत्तर-प्रदेश मै शिक्षकौ के तबादले सिर्फ उनकी मांग एवम आवश्यकता के अनुसार ही होंगे। उनके रुटीन ट्रांसफर अब बंद कर दिये गये हैं। इस्मे सबसे पहली प्राथमिकता महीलाऑ को दी गयी है। महिलाओ को अब हर हाल मे उनकी पसंद के स्थान अथवा उनके परिवार के साथ ही  ट्रांस्फर-पोस्टिंग की जायेगी।
ठीक यही स्थिती, विकलांग और अपंग शिक्षकौ की है। उन्हॅ भी उनके मनपसंद स्थान पर ट्रांसफर किया जयेगा। गम्भीर रुप से बीमार शिक्षकौ को भी उनके मनपसंद स्थान पर नियुक्त किया जायेगा जिससे वो अपने स्वास्थ्य का ख्याल रख सकॅ। सेवानिव्रत होने वाले शिक्षकौ को भी अंतिम नियुक्ति उनकी पसंद के अनुसार दी जयेगी।
इस सारी व्यवस्था मे समपपूर्ण पारदर्शिता है तथा कही भी, किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार एवम भाईभतिजावाद की कही भी कोई गुंजायश ही नही छोड़ी गई है। इससे शिक्षक भी तनावमुक्त रहते हैं तथा वे भी अपने कार्य पर, शिक्षा तथा छात्रौ पर समुचित ध्यान दे पायेगे।
ठीक यही व्यवस्था सारे देश को अपनानी चाहिये। इससे सभी विभागौ मे भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने मॅ काफी मदद मिलेगी तथा कर्मचारियौ की कार्य क्षमता सुधारने मे काफी मदद मिलेगी। सिर्फ भ्रष्टाचार मॅ फसे कर्मचारियौ को यह सुविधा नही देनी चाहिये। इससे कर्मचारियौ को भ्रष्टाचार से दूर रख्नने मे भी मदद निलेगी।
जहॉ एक ओर ट्रांस्फर-पोस्टिंग कर्मचारियौ की कार्य-क्षमता ख्त्म कर रहा है वही दुसरी ओर उसमे व्यापत भ्रष्टाचार समाज एवम राष्ट्र के लिये एक बड़ा खतरा बन गया है। इसके साथ ही साथ, दुर-दरज के क्षेत्रौ मे ट्रांस्फर से कर्मचारियौ का सामाजिक बिख्राव एवम अलगाव सा भी हो जाता है। इस कारण प्रत्येक कर्म्चारी को जहॉ तक हो सके उसके ग्रहा-जनपद मे ही नियुक्ति देनी चहिये। इन व्यवस्थायॉ के लागू करने से अनेक सामाजिक एवम प्रशानिक समस्यायॉ का हल निकाला जा सकता है।
                                                             

Saturday, 18 August 2018

I don’t know!



Asks, Yogesh, who am I, I don’t know?

Neither, I am a believer, nor a non-believer,

I neither shout in a mosque, nor mass in the church.

I am neither holy nor unholy,

Neither a Mohammad nor a Jesus,

Who am I, I don’t know?



I am neither a saint nor a sinner,

I am neither blissful nor gloomy.

I am neither water nor soil,

I am neither air nor fire.

Who am I, I don’t know?



Neither I know the mystery of God, nor religion,

Neither am I born of Adam nor of Eve,

Neither have I an abode, nor name.

Neither is I a static nor a wanderer,

Who am I, I don’t know?



I am not without a beginning, nor have an end, 

I am neither wise nor unwise,

I am neither ugly nor handsome.

My secret is known to all but still, I am a mystery,

Who am I, I don’t know?



I am not from Mecca or Media,

Nor from Vatican or Kaba,

Neither is I a Muslim nor Christian.

I am never born or decayed,

Asks Yogesh, Who am I, I don’t know?




Thursday, 9 August 2018

Institutional Violence


There was big outrage on Twitter and other social networking sites on the Rs.4,800/= spent by the Union government on advertisements since 2014 of its achievements. This outrage is misplaced. People make a big noise on non-issues but remain silent on much bigger issues.
The policies of the government are regular institutional violence and a huge waste of public money. The Indian state is no more a benevolent state.  It is benevolent only to vote banks like Muslims, Christians, SCs, STs, OBCs etc. All the resources are reserved for them. There all the wishes are fulfilled. Statues can be amended for them, loans and scholarships can be awarded to them without any merit, etc., etc.   Others are just numbers.
Our money was taken from us as taxes is showered on them. This is an institutional violence let loose by all the governments. Very recently, the Parliament turned down a ruling of the highest court of the land, only to appease SCs and STs, a big vote bank. With this amendment, non-SCs and STs can be arrested on a simple complaint, means all their human rights are in the hands of SCs and STs. This is the most draconian type of state violence.  
On Kashmir, the government spent thousands and thousands of crores of the taxpayers' money, only to appease the rioters and separatists. Similarly, the governments spent thousands of crores on minority institutions like AMU, Jamia, Presidency University etc. but they do not give lawful and proper representation to Hindus, SCs, STs, and OBCs. On foreign infiltrators like Rohingya Muslims, Bangladesh infiltrators etc. the government spent thousands of crores of taxpayers' money. It is also the huge criminal waste of public money.
Citizens go with great hope to the courts but courts take decades and decades in deciding the cases. Indian courts have maximum vacations and holidays and most of the time lawyers are on strike. Dates and adjournments are the most regular feature of courts. Litigants have to suffer for decades and decades. They have no remedy but to bear this institutional violence.
In India, there are around 2.5 million NGOs and the governments give them grants and donations very liberally. It is a well-known fact that NGOs do nothing and all the work is done only in files only. However, they intrude on the lives of the citizens very violently. This is a big criminal waste of money but the government institutions are very kind to them and the poor citizens have to live with this institutional violence.  
India has the maximum number of students in the world. There are around 25 crores students in primary and secondary education and 12 crores in higher education. Nevertheless, more than 75% are non-serious students but the government has to spend a huge amount of money on these non-serious students. No Detention System, CBCS, moderation, standardization, percentile system, positive discrimination, reservation, internal and continuous assessment etc. are some sick methods which are introduced in the names of reforms to promote these non-serious students. There is a huge waste of public money on education. If examinations, evaluation and admissions are conducted without any cheating, pass percentage cannot cross the 20% mark.
Every year millions of government employees, PSU employees, bank employees, teachers, doctors, etc. are transferred every year without any logic and thousands of crores of public money is spent on this transfer industry. Ironically, the transfer industry is the most corrupt industry in the country. Not only this, this draconian transfer system breaks and divides families; create immense tension and disruption in the lives of the victim. But people live with this institutional violence. Families are devastated and ruined by this transfer system. This is the most brutal institutional violence. Women must be posted near their family. Breaking a family is the most inhuman state violence.
Regardless of any individual ideology or affiliations, the above-mentioned facts are uncontestable. It is a plain reality that our government has been inflicting scars on the individuals with institutional violence. Now people have surrendered and accepted this institutional violence. Institutional violence is at every step. Instead of wasting money and resources on this violence, the state should do some other positive, useful and welfare things.
The state should spend money on health, villages, farmers, agriculture and better infrastructure. It is a naked point that our political masters are driven by greed, votes and power. They need votes to win, voters need freebies, and again this is an institutional violence. The purpose of this article is not to support or oppose any ideologies, groups or government but highlighting the wrong or misplaced priorities and actions. The cost involves the money of not only rich industrialists, but also of the middle class and poor.
Nobody can justify the institutional violence.

Sunday, 5 August 2018

All Will Dissolve-1



Count the years, and realize;
Time runs very fast,
Every breath reduces the size,
Lifespan is cut short,
Man is like a lamb, first, he frolics with pleasure;
But seeing the slaughterer curses his own birth and leisure.

Endless meetings, discussions
Procedures, regulations, statute books,
All waste of time and cutting the inhalations,
Knowing, nothing will happen, all laughing looks,
Slavery of thousands of years,
Have filled us with unknown fears.

Life is very short and never last;
Nobody knows the real will,
All are running aimlessly, fast;
Nobody has anything skill,
Understand your own follies,
Not to inflate with egos and bullies.

Surround yourself with humans,
That sooth the ripped heart,
Capable of making a man of demons,
And curing insanity into sweet desserts,
Such souls can deliver bliss to all,
And peace to all without fail.

Bang and tears of the cows on the harsh talk,
The gossip of the lanes, tires of the lorries,
The stuff of shoe-soles, chat of the public walk,
The grave collection, the driver with his queries,
Unmindful of all-Time comes and departs;
And no-one else far away in the wilderness it parts.

Thursday, 2 August 2018

Mahakavi: Neeraj

O BARD OF THE NATION! O bard of the nation! 
Your magical journey is done; 
The caravan has conquered all the hearts, the honour you, winning; 
The masses are near, the voice is echoing, the natives all rejoicing, 
All eyes eagerly fixed on you, the air gloomy and grim: 
But O eyes and ears! Eyes and ears! Ears and eyes! 
O the moving breaths of life stopped, 
Where on the stature my Mahakavi lies, 
Sleeping cold and dead.

O BARD OF THE NATION! O bard of the nation! 
Get up and listen to the voices with passion; 
Get up- for you, the audience is eager- for you the words trills; 
For you garlands and decorated stage- for you the air shrills; 
For you they clap, the convincing crowd, their gloomy faces turning dim; 
Here Mahakavi! Greatest lyrist! 
The voice that mesmerized million with the sound; 
Some bad seen that fallen on the stand sans resist, 
You are sleeping cold and dead.

O BARD OF THE NATION! O bard of the nation! 
The Mahakavi does not sing, his face is pale and no motion; 
The national bard does not feel any touch nor has he will or pulse; 
The voyage is driven in style and sound, won and stopped the cruise; 
From fiery excursion, the winner's vessel reaches in with purpose win; 
Take pride, O stage, and audience, O chimes! 
But I, with woeful head, 
Pace the floor my Bard lies, 
Sleeping cold and dead.



N.B. 
Mahakavi: The greatest post or the poets' poet. 
Neeraj: Dr.Gopal Das Neeraj, popularly known as Neeraj who died on Thursday, July 19,2018, in Delhi, India. He was the recipient of Padma Bhushan.
Caravan: Group of travellers