Wednesday, 4 April 2018

मुर्झाते रिश्ते



कोई कहता है, कि सेहत खराब है,
कोई कहता है, कि समय नही है,
कोई कहता है, कि काम बहुत है,
कोई कोई कहता है, कि पत्नी बीमार है,
पर कोई जालिम नहीं कहता है,
कि रिश्ते के फूल मुर्झा गये हैं।

पहले जो दिनभर साथ दौडृते, खेलते थे,
अब साथ चलने मै भी थकने लगे हैं,
पहले जो प्रेम्‌ प्यार के खत लिखते थे,
अब वकिलॉ से वसीयत लिखवा रहे हैं,
पर कोई जालिम नहीं कहता है,
कि रिश्ते के फूल मुर्झा गये हैं।

कोई लोन की किश्तॉ की चिंता मे डृबा हुआ है,
तो कोई हेल्थ टैस्ट की चिंता मे डृबा हुआ है,
कोई बच्चॉ के स्कूल की फीस की चिंता मे डृबा हुआ है,
तो कोई हास्पिटल के बिल की चिंता मे डृबा हुआ है,
पर कोई जालिम नहीं कहता है,
कि रिश्ते के फूल मुर्झा गये हैं।

फुर्सत ही फुर्सत है, पर समय ही नही है,
घर भरा पडा है, पर चेहरे पर गम ही गम हैं,
जेब भरी रहती हैं, पर ऑखॉ सूनी रहती हैं, 
भीडृ ही भीडृ मॅ,सब अकेले पडॅ रहते हैं,
पर कोई जालिम नहीं कहता है,
कि रिश्ते के फूल मुर्झा गये हैं।



No comments:

Post a Comment