मेरे मुहल्ले में एक छोटा सा मंदिर है उसमे पांच हिंदु परिवार साथ-साथ रहते थे जिनमे से एक ब्राह्मण एक ठाकुर, एक बनिया और दो हरिजन परिवार थे। एक कोने मे एक टीन शेड था जो काफी समय से खाली पड़ा था। बहुत छोटा था इसलिए कोई उसमें रहने नहीं आता था। वहां एक अब्दुल नाम का भिखारी मंदिर के बाहर भीख मांगता रहता था। एक दिन उसकी नजर उस तीन शेड पर पड़ी और वो पंडित जी की खुशामद करने लगे कि उसे उस टीन शेड में रहने की मिन्न्तें करने लगा।
टीन शेड खाली था और अब्दुल एकदम सीधा-साथा आदमी
था। पंडित जी बहुत सीधे और दयालु
थे। वे अब्दुल की चिकनी-चुपडी बातों में आ गये और वो टीन शेड रहने
के लिये दे दिया गया। मंदिर के बाहर ही शबाना नाम की एक अपाहिज भिखारिन भी भीख
मांगा करती थी। थोड़े समय बाद अब्दुल ने चुपचाप एक मस्जिद में जाकर अपाहिज भिखारिन
शबाना से निकाह कर लिया।
कुछ समय तक दोंनों ने अपनी शादी को छिपा कर रखा। पर कुछ समय बाद अब्दुल अपने साथ अपाहिज
भिखारिन को भी रखने लगा और उन्होंने अपनी निकाह होने की सब को बता दिया। समय बीतता
गया और अपाहिज भिखारिन ने मुमताज महल की तरह दस वर्षों में ही छः बच्चॉं को जन्म
दिया।
अब्दुल के एक लड़्के ने मन्दिर के सामने ही पंचर
लगाने का एक खोखा खोल लिया। अब्दुल के सारे बच्चे बहुत शैतान थे वो बाकी सभी बच्चों
के ऊपर रोब जमाने लगे। साथ-साथ खेलते देखते अब्दुल ने दुसरी निकाह कर लिया दूसरी
शादी से पांच बच्चे और हो गये। पहली बीबी से छ: बच्चे पहले से ही थे। कुल ग्यारह बच्चे हो गये।
हालांकि टीन शेड बहुत छोटा था। वो सभी जमीन पर
ही टाट बिछा कर बाहर ही लेटे रहते थे और अचानक एक दिन टाट का टट्टर लगाकर पड़ोसी लाला
जी का आगन घेर लिया। लाला जी डर के कारण कुछ न बोल पाये। बच्चों की मदरसे की शिक्षा
के कारण वे बहुत कट्टर हो गये थे और मूर्ति पूजा के कारण उनके मन में ये बात भर गई
कि हिन्दु काफिर होते हैं।
अब अब्दुल का पूरा परिवार मंदिर मे ही रोजाना की नमाज़ भी पढ़्ने लगा। वो सभी
अब मंदिर मे दादागिरी भी दिखाने लगे। एक दिन अब्दुल के बड़े लड़्के आमिर की
मंदिर के सामने साईकिल खड़ी करने के कारण हरिजन के लड़के अशोक से मारपीट हो गई।
अशोक को अब्दुल के लड़कों ने घेर कर बुरी तरह से धुन दिया।
जब अब्दुल के लड़्के गरीब हरिजन के लड़्ते अशोक
को लाठी डंडों से पीटना शुरु कर दिया तो भयभीत हरिजन भागता हुआ अब्दुल के पास अपने
लड़्के को बचाने की प्रार्थना करने लगा। अब्दुल भाई चलो नहीं तो तुम्हारे बच्चे
मेरे लड़्के को जान से मार डालेंगे। इतना सुनने के बाद अब्दुल हंसते हुए आया और अशोक
की जान बचा दी।
तभी अजान की आवाज आने लगी। अब्दुल और उनके
बच्चे सभी एकदम चुपचाप खड़े हो गये। तमाशबीन बने सभी हिंदु भी डर के मारे अजान के समय
खुद भी शांत खड़े हो गये। अब्दुल ने हंसते हुए अशोक के सर पर हाथ फेरा। उसकी
मुस्कराहट मे दुष्टता और कुटिलता खुदा की बंदगी की तरह टपक रही थी।
तब तक अजान पूरी हो गई। अब्दुल ने बड़ी धुर्तता से
हरिजन से कहा,
भाई अशोक से कहिए झगड़ा ना किया करो। साईकिल कहीं और खड़ी कर लिया करो। कल मै कहीं
और् हुआ तो कौन तुम्हें बचायेगा। सीधे-साधे बच्चे है उन्हें क्या पता मारपीट से
क्या नुकसान है।
अब्दुल के चेहरे पर कुटीलता भरा जीत का भाव था। हरिजन और अब्दुल के बच्चे साथ-साथ ही बढे
हुये थे। अशोक की पिटाई के बाद सभी हिंदु परिवार अब्दुल और उसके बच्चौ से डरे-सहमे
रहने लगे। हरिजन और बनिये की दो-दो बेटियां जोधा-अकबर और पीके जैसी फिल्मे देख कर
सेकुलर बन गयीं और अब्दुल के लड़्को के साथ भाग गयी। डर और शर्म के आरण सभी हिंदु
मंदिर ओर मोहल्ला छोड़ कर भाग गये और अपने मकानों पर पोस्टर चिपका दिया 'मकान बिकाऊ है।'
जो भी मकान देखने आता उसे अब्दुल के खुराफाती
लड़्के धमका कर भगा देते। इसके बाद भी कोई खरीददार आता वो देखता जगह-जगह गदंगी, मुर्गों के पंख, हड्डियॉ आदि पड़ी देख कर भाग जाते। बदबू
सुंघ कर सभी चले जाते।
फिर रात को अब्दुल के लड़्कों ने सभी मकानों के
ताले तोड़कर कब्जा कर लिया। प्रशासन भी डरकर चुपचाप सोता रहा। सब खत्म हो गया। एक
दिन अब्दुल की ज्यादा भांग की चिलम पीने से मौत हो गयी। उसके लड़्कों ने मंदिर नें
ही अब्दुल को दफना दिया और वहीं उसकी नज़ार बना दी। अब्दुल की बीमार, दुसरी बीबी का, उसके बच्चों ने इलाज ही नही करवाया और
मरने के लिये सरकारी अस्पताल में भर्ती कर छोड़ कर आ गये। कुछ सनय बाद उसकी भी मौत
हो गये।
अब्दुल के बच्चॉ ने अपनी मां को भी मंदिर मे ही
दफना दिया तथा शाह्जहॉ-मुमताज की तरह दोनॉ की मज़ार बराबर-बराबर ही बना दी। हिंदु
भक्त उन मजारों को प्रेम के निशान के रुप में पुजने लगे। तथा विवाह योग्य लड्कियां
मज़ार पर चादर चढाने लगी। संतानहींन ओरतें अब्दुल के लड़्कों के पास संतान प्राप्ति
के लिये इलाज के लिये आने लगीं। सम्पत्ती के लालची लोग भी मज़ार पर आने लगे।
सेकुलर और वामपंथी जिवियों ने उस मज़ार को प्रेम, संतान और सुख प्राप्ति के लिये महान
सूफी बाबा अब्दुल की चमत्कारिक मज़ार के रूप में स्कूल के पाठयक्रम में शामिल करवा
दिया तथा
उसे गंगा-जमुना तहजीब का नायाब उदाहरण बताया।
अब्दुल का भाग्यवान पंचर का खोखा आज भी वहीं
है।